Sunday, November 14, 2010

सारे जहां का दर्द......!

शरद भाई बैंक की नौकरी छोड़कर, चाय ठेला चला रहे हैं
"मुख्य रूप से कविता लिखता हूँ । कभी कभी कहानी,व्यंग्य,लेख और समीक्षाएँ भी । एक कविता संग्रह "गुनगुनी धूप में बैठकर " और "पहल" में प्रकाशित लम्बी कविता "पुरातत्ववेत्ता " के अलावा सभी महत्वपूर्ण साहित्यिक पत्रिकाओं में कवितायें व लेख प्रकाशित । संगीत सुनना अच्छा लगता है और मित्र बनाना । झोपड़पट्टियों में जाकर उनके दुखदर्द बाँटता हूँ जिनके पास दुख ही दुख हैं । अपनी तरह से ज़िन्दगी जीने का शौक है इसलिये स्टेट बैंक की नौकरी छोड़कर अपनी फाकामस्ती के रंग लाने के इंतज़ार में हूँ ।" ये शब्द हैं कवि शरद  कोकास के जिसके अंतर मन में लगी आग उसे न कभी आराम करने देती है और न ही कभी चैन लेने देती है. 
बैंक की अच्छी भली नौकरी छोड़ देना आसान नहीं होता लेकिन हमारे शरद भाई ने ऐसा किया. आजकल वे क्या कर रहे हैं ? क्या आप जानना चाहते हैं ? इस सवाल का जवाब दे रहे हैं हमारे एक और ब्लागर भाई संजीव तिवारी. ज़रा देखिये वे क्या कहते हैं,"मेल-मुलाकातों में हमने कभी पूछा भी नहीं कि वे अब क्‍या करते हैं किन्‍तु आज उन्‍हें कर्मनिष्‍ठ देखकर हम चकरा गए, हुआ यूं कि हम भिलाई में आयोजित जन संस्‍कृति मंच के राष्‍ट्रीय अधिवेशन में कुछ ज्ञान बटोरने के लिए गए तो वहां कार्यक्रम स्‍थल के बाजू में शरद भाई हमें चाय ठेले में चाय बनाते मिले .... शरद भाई बैंक की नौकरी छोड़कर, चाय ठेला चला रहे हैं ... हमारी आंखें तो आश्‍चर्य से फटी की फटी रह गई किन्‍तु शरद भाई नें मुस्‍कुराते हुए चाय बनाकर पिलाया और हमने एक फोटो के लिए फलैश चमकाया, आप भी देखें"
संजीव जी बताते हैं कि," शरद कोकाश जी मेरे नगर में ही रहते हैं, गाहे-बगाहे मेल-मुलाकात होते रहती है एवं मोबाईल में बातें भी होती है, वे मुख्‍य रूप से कवितायें लिखते हैं, कहानी,व्यंग्य,लेख और समीक्षाएँ भी लिखते हैं। उनकी एक कविता संग्रह "गुनगुनी धूप में बैठकर" और "पहल" में प्रकाशित लम्बी कविता "पुरातत्ववेत्ता " के अलावा सभी महत्वपूर्ण साहित्यिक पत्रिकाओं में कवितायें व लेख प्रकाशित हुई हैं। इसके साथ ही वे शरद कोकाशपास पड़ोस व ना जादू ना टोना नाम से ब्‍लॉग भी लिखते हैं। उनके पेशे के संबंध में जो जानकारी मुझे है उसके अनुसार से वे भारतीय स्‍टैट बैंक में सेवारत थे जहॉं से उन्‍होंनें स्‍वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली है।"शरद की रचना आम आदमी के दुःख कि बात करती है, उसके शोषण की बात करती है, उसके खिलाफ हो रही साज़िशों की बात कर्त्री है. उनके ब्लागों में, उनकी रचनायों में एक दर्द समाया हुआ है. यहां से वहां तक. इधर से उधर तक. मित्रों से लेकर उन लोगों का दर्द भी जिन्हें वे शायद कभी न मिलें हों. ब्लाग जगत के जानेमाने नाम और सभी से मित्र की तरह मिलने वाले बी एस पाबला जी एक दुर्घटना से बाल बाल बचे. इसका पता शरद जी की पोस्ट से ही लगा पर बहुत देर से. अगर मित्र पाबला जी की उर्घ्तना सुन कर वह दुखी होते हैं तो अरबी में कविता लिखने वाली दून्या की चिंता भी उन्हें बराबर होती है. वह उसका जिक्र भी उसी शिद्दत से करते हैं. कोई जादू टोना का नाटक करके किसी का शोषण करे और कोई किसी और तरीके से. शरद भाई उसे अपनी कलम का निशाना जरूर बताते हैं. आप उनसे यहां क्लिक करके भी मिल सकते हैं और उनके मौजूदा काम का पता बताने वाले भाई संजीव तिवारी से आपकी मुलाकात यहां क्लिक करके हो सकती है. अगर आपके पास भी कुछ ऐसी ही नयी जानकारी हो तो उसे अवश्य भेजें.-रेक्टर कथूरिया 

1 comment:

Rahul Singh said...

शरद जी और संजीव जी से तो मिल चुके थे, यहां आकर देखा कि यही खबर आपके पंजाब से भी आ रही है.