Saturday, September 18, 2010

ज्ञान, मैडल और नक़ल

संकट में मीडिया एक छोटी सी पोस्ट थी जो पंजाब स्क्रीन पर 17 सितम्बर 2010 को प्रकाशित हुई. इसमें कुछ मुद्दे थे जिन्हें उठाने के लिए कुछ लिंक दिए गए थे. इस पर एक वशिष्ट टिप्पणी प्राप्त हुई जिसे भेजने वाले ने इससे कहीं अधिक महत्व के मुद्दे उठाएं हैं. जिस तरफ से यह टिप्पणी आई उसकी आवाज़ को दबाने के लिए दुनिया भर में साजिशें हुईं. कहीं जानबूझ कर और कहीं किसी मजबूरी, डर या दबाव में. लेकिन यह तो वह आवाज़ थी जिसें तूफानों के सामने चिराग जलाने की ज़िद पूरी करके दिखानी थी और दिखाई भी. अब इस आवाज़ ने फिर चेताया है. ज्ञान और शिक्षा के नाम पर जो अज्ञान एकत्र करके उस पर गौरव दिखाया जा रहा है उस पर टिप्पणी करते हुए यह आवाज़ कहती है, "आज का इंसान भी कुछ ऐसा ही हो गया है जो शिक्षा चाहता हैगोल्ड मेडल चाहता हैसबसे आगे रहना चाहता हैप्रमाण पत्र चाहता है पर ज्ञान नहीं ....ज्ञान के लिए विनम्रता जरुरी हैस्वयं का ज्ञान होना ही ब्रह्म का ज्ञान है." आप पूरी पढ़ने तक पहुंच सके तो आपको भी मिलेगा एक नया ज्ञान और पूरी पढ़ने के लिए आपको बस यहां क्लिक करना होगा. इस पोस्ट पर टिप्पणियों का सिलसिला चला तो किसी मित्र ने अपना एतराज़ दर्ज कराते हुए कहा, "क्या गोल्ड मेडल के साथ ज्ञान असंभव है? ओशो भी तो गोल्ड मेडलिस्ट थे!" इसके जवाब में जो लिंक वहां दिया गया उसे यहां भी दिया जा रहा नकल का ऐसा खेल . अगर आप इस मामले पर कुछ कहना चाहते हैं तो आपका भी स्वागत है. अगर आप के पास कोई ऐसा लिंक है तो आपभी हमें भेजिए हम उसे आपके नाम के साथ प्रकाशित करेंगे.       --रेक्टर कथूरिया 

4 comments:

गजेन्द्र सिंह said...

बढ़िया लिंक दिया है आपने अपनी साईट में, वैसे हम तो इस साईट को काफी समय से पढ़ रहे है.......

Harvansh Sharma said...

बढ़िया बात कही है आपके दिए हुए लिंक पर .........आभार इस लिंक के लिए , सार्थक लेख

Harvansh Sharma said...

बढ़िया बात कही है आपके दिए हुए लिंक पर .........आभार इस लिंक के लिए , सार्थक लेख

M said...

बढ़िया लिंक दिया है आपने ........... बढ़िया लेख