Monday, August 02, 2010

सारे जहां का दर्द हमारे जिगर में है...पर उनका दर्द किसके दिल में...?

पत्रकार ही एक ऐसा प्राणी है जिसका कोई वेतनमान नहीं, सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा नहीं और न ही जीवन की अंतिम बेला में जीने के लिए कोई पेंशन। असंगठित पत्रकारों की हालत और भी खराब है। जिलों के पत्रकार मुफलिसी में किसी तरह अपना और परिवार का पेट पाल रहे हैं। दूसरी तरफ अखबारों और चैनलों का मुनाफा लगातार बढ़ रहा है। इस पूरे मामले पर इस ख़ास लेख को आप पढ़ सकते हैं केवल यहां क्लिक करके तांकि आप भी जान सकें उनके लिए जो जीते हैं आपके लिए और अगर मरते भी हैं तो आपके लिए, आपके दर्द को अपनी आवाज़ देने के लिए. खुद के दर्द को सारी उम्र खुद से दूर नहीं कर पाते पर फिर भी कहते हैं...सारे जहां का दर्द हमारे जिगर में है.....पर आज उनका दर्द किसके दिल में है...?
पत्रकारिता की बात करते हुए विक्रम शाह ने भी कुछ कहा है.वह कहते हैं,"मैं एक स्वतंत्र पत्रकार हूं। मीडिया में मेरा अनुभव तीन वर्षों का है। मीडिया खबर बनाम आजाद न्यूज मामले से अपना लेना-देना महज पत्रकारीय दृष्टिकोण बनाने के सिलसिले तक सीमित है। चूंकि, दोनों पक्षों के कुछ लोगों से मेरी बातचीत होती है, इसलिए मैं एक निष्कर्ष पर पहुंच पाया हूं। आशा है, आप मेरे लेख को स्थान देंगे। उन्होंने क्या कहा इस पूरे विवरण को आप पढ़ सकते हैं केवल यहाँ क्लिक करके.
उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जनपद में हिंदुस्तान के एक संवाददाता की बेरहमी से हत्या कर दी गयी है। कमलेश कुमार नामक ये युवा पत्रकार पिछले 5 वर्षों से आदिवासी बहुल बभनी इलाके में काम कर रहे थे और सोनभद्र के जंगलों में सागौन की तस्करी पर इन्होने कई बड़ी रिपोर्ट लिखी थी। मृतक के सर पर गंभीर चोट के निशान पाए गए हैं साथ ही उसके शरीर पर "खून का बदला खून " गुदा हुआ पाया गया। आश्चर्यजनक ये था कि सोनभद्र पुलिस ने हत्या की इस सनसनीखेज वारदात की सूचना मिलने के बावजूद न तो मृतक के परिजनों को कोई इतिल्ला दी और न ही किसी प्रकार की तहकीकात शुरू की। समाचार भेजे जाने तक पत्रकारों ने पुलिस के इस रवैये के खिलाफ दुद्धी कोतवाली को घेर रखा था...पूरी रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. इस मुद्दे पर बहुत कुछ और भी है जो आपको पढना चाहिए.अगर आपके पास भी कोई ऐसी सूचना हो तो अवश्य भेजें.--रेक्टर कथूरिया  

1 comment:

मनोज कुमार said...

चिंताजनक अवस्था!