Friday, December 18, 2009

पृथ्वी के वायुमण्डल पर विश्व के प्रत्येक नागरिक का समान अधिकार है--मनमोहन सिंह


प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि पृथ्वी के वायुमण्डल पर विश्व के प्रत्येक नागरिक का समान अधिकार है. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक भारत ने साफ किया है कि वह इस मामले में विश्व समुदाय के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने को तैयार है लेकिन इससे निपटने  का  तरीका ऐसा नहीं होना चाहिये कि गरीब देश गरीब ही बने रहें.
इसी मौके पर 12 दिन लंबी बातचीत के बाद जब विश्व नेताओं की बैठक में कुछ ही घण्टे बचे थे भारत के पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने मेजबान डेनमार्क पर आरोप लगाते हुये कहा, " डेनमार्क के प्रतिनिधियों द्वारा राजनीतिक बातचीत के परिणामों को सार्वजनिक नहीं करना सबसे ज्यादा परेशान करने वाला है.
इसी  दौरान   विदेश सचिव निरुपमा राव की ओर से जारी इस बयान में कहा गया है, "हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि नई राजनीतिक प्रतिबद्धता वाले समझौते से कहीं ऐसा न हो जाए कि बाली एक्शन प्लान से ही ध्यान भटक जाए और ऐसा न हो कि विकसित और विकासशील देशों के बीच ज़िम्मेदारियों के बँटवारे की जो सहमति बनी थी वह ख़त्म हो जाए.
उल्लेखनीय है कि 192 देशों का यह दो सप्ताहों का ऐतिहासिक सम्मेलन,सोमवार ७ दिसम्बर को शुरू हुआ था. उसमें भाग ले रहे कई देश कार्बन उत्सर्जन पर नियंत्रण के तरीक़े खोजने के प्रयास में हैं जिसका संबंध जलवायु परिवर्तन से बताया जाता है. कोपेनहेगन में सम्मेलन के मेज़बान और डेनिश प्रधान मंत्री लार्स लोक्के रासमुसेन ने प्रतिनिधियों से कहा क्योटो संधि को बदल कर एक विश्व व्यापी संधि स्थापित करने का समय आ गया है जो सन 2012 मे समाप्त हो रही है.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि भारत का ये विचार है कि पृथ्वी के तापमान में देखी जा रही वृद्धि वास्तविक है और इसका सबसे ज्यादा खराब असर उस जैसे विकासशील देशों पर ही दिखाई पड़ रहा है. मनमोहन सिंह ने कहा कि यही वजह है कि इस मामले में पहल करते हुये भारत ने स्वेच्छा से 2020 तक अपने कॉर्बन उत्सर्जन में 20-25 प्रतिशत की कटौती का प्रस्ताव रखा है. उन्होंने कहा कि इस समस्या से निपटने के उपाय के तौर पर राष्ट्रीय जलवायु कार्ययोजना को लागू किया जा चुका है और इसके अलावा आठ राष्ट्रीय योजनाओं की घोषणा भी की जा चुकी है. प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत इससे भी आगे बढ़ने को तैयार है बशर्ते विकसित देश भारत को अतिरिक्त आर्थिक सहायता के साथ-साथ जरूरी तकनीक भी मुहैया करायें. मनमोहन सिंह ने याद दिलाया कि यूएनएफसीसी का गठन ही 'जिस राष्ट्र की जैसी क्षमता उसकी वैसी जिम्मेदारी' के सिद्धान्त पर किया गया था. उन्होंने कहा कि कोपेनहेगन बैठक में भारत रचनात्मक भूमिका निभाने को तैयार है क्योंकि ये बैठक सभी के भविष्य के लिये बेहद जलवायु वैज्ञानिकों के राष्ट्रसंघ पैनल के प्रमुख राजेन्द्र पचौरी ने कहा कि समुद्री तूफ़ानों, ग्रीष्म लहरों, तटीय बाढ़ों और सूखे को रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों कि आवश्यकता है.सम्मेलन के पहले की गई वार्ताओं में यह नहीं तय हो पाया कि स्वच्छ उद्योगों के विकास में निर्धन देशों की सहायता के लिए धनाड्य देशों को कितनी सहायता देनी चाहिए. विकासशील देशों की यह मांग भी है कि धनाड्य देश कार्बन उत्सर्जन में जितनी कटौती का वचन दे चुके हैं, उससे कहीं अधिक कटौती का वचन दें.रविवार को दक्षिण कोरिया ने सन् 2020 तक अपनी ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में 34 प्रतिशत और 2025 तक 42 प्रतिशत की कटौती की पेशकश की थी.  यहाँ यह स्पष्ट करना भी आवश्यक लगता है कि विशेषज्ञों के मुताबिक मौसम में बदलाव काफी जल्दी होता है लेकिन जलवायु में बदलाव आने में काफी समय लगता है और इसीलिये ये कम दिखाई देते हैं। इस समय पृथ्वी के जलवायु में परिवर्तन हो रहा है और सभी जीवित प्राणियों ने इस बदलाव के साथ सामंजस्य भी बैठा लिया है। परंतु, पिछले 150-200 वर्षों में ये जलवायु परिवर्तन इतनी तेजी से हुआ है कि प्राणी व वनस्पति जगत को इस बदलाव के साथ सामंजस्य बैठा पाने में मुश्किल हो रहा है। इस परिवर्तन के लिये एक प्रकार से मानवीय क्रिया-कलाप ही जिम्मेदार है.
अफ्रीकी देशों के प्रतिनिधियों ने अपने अपने देशों में हो रहे जलवायु परिवर्तनों के प्रभावों के उदाहरण दिए. घाना के राष्ट्रपति द्वारा दिया गया निम्न वक्तव्य अन्य अफ़्रीकी देशों के नेताओं द्वारा बताए गए विवरणों के प्रतिबिम्ब स्वरूप रहा कि मौजूदा परिस्थिति कैसी है. उन्होंने कहा कि अफ़्रीका तथा अन्य विकासशील देशों में जलवायु परिवर्तन की वजह से जीवन की आवश्यकताओं की गारंटी के लिए पहले से ही मुश्किलें पैदा होने लगी हैं. ये देश जिनमें मेरा देश घाना भी शामिल है, पहले से ही पर्यावरण के बारे में ग़लत जानकारियों की वजह से तथा औद्योगिक देशों के उत्सर्जनों की वजह से परिवर्तनों के प्रभावों को महसूस कर रहे हैं. बारिश की ऊंच-नीच, सूखा, मरूस्थलीकरण, बाढ़ तथा अन्य मौसम आधारित विपदाएँ सीधे सीधे मनुष्य के जीवन पर खतरा पैदा कर रहे हैं और कृषि उत्पादन, भोजन और पानी की सुलभता को भी कम कर रहे हैं
बैठक में हिलैरी क्लिंटन के अलावा ब्रिटिश प्रधान मंत्री गार्डन ब्राउन, फ़्रांसीसी राष्ट्रपति निकोला सारकोज़ी, रूस के राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव, ब्राज़ील के राष्ट्रपति लूला दा सिलवा और जर्मन चांसलर आंगेला मैर्केल भी देखे गए. इससे पहले सम्मेलन से अपनी अपेक्षा को रेखांकित करते हुए जर्मन चांसलर मैर्केल ने कहा कि तापमान में वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए सभी देशों के लिए बाध्यकारी फ़ैसला चाहिए. अगर सभी देशों के लिए बाध्यकारी ऐसा समझौता नहीं होता है, फिर उनकी राय में कोपेनहेगेन का जलवायु सम्मेलन विफल रहा. लेकिन थोड़ी ही देर बाद डेनमार्क के कूटनीतिक अधिकारियों ने ख़बर दी कि एक मसौदा तैयार है और....