Wednesday, April 15, 2009

अक्षरों के ज़रिये चेतना की रौशनी बाँट रहा "अक्खर"

घर में जितनी भी किताबें थी वे मैं सब पढ़ चुका था। न ही समीक्षा के लिए कोई नयी किताब मेरे पास आई थी और न ही भेंट में. चैनल की नौकरी छोड़ने के बाद वितीय संकट भी एक बार फिर गहरा गया था। किसी बुक स्टाल पर भी अब पहले की तरह एक दम सीधे सीधे जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। एक दिन लुधियाना के पंजाबी भवन में एक मीटिंग का बुलावा था सो वहां चला गया। मीटिंग शुरू होने में अभी आधा घंटा लगता नज़र आ रहा था. वक़्त का फायदा उठाने के लिए वहीँ पर स्थित लोक गीत प्रकाशन के कार्यालय में जाना कुछ ज्यादा ठीक लगा। मन में आया के चलो नयी किताबों का भी पता चल जायेगा और कीमत का भी कुछ अंदाजा हो जायेगा. वहां विनय कुमार जी थे शायद वहां के इंचार्ज। बहुत ही सनेह से मिले और सूचि मांगने पर उन्होंने मुझे अमृतसर से निकलती एक पंजाबी पत्रिका "अक्खर" का अप्रैल अंक पकड़ा दिया जिसमें पुस्तक सूची भी थी और बहुत कुछ और भी था जिसने मुझे काफी सुखद अहसास दिया। इस पत्रिका में काफी कुछ था। गुलज़ार की नज़म, वान गाग का उदासी का पोर्ट्रेट, डॉक्टर रविंदर से मुलाकात, नोबल पुरस्कार को आलुओं की बोरी कह कर ठुकरा देने वाले जान पाल सार्तेर के साथ उसकी महबूबा का संवाद और बहुत कुछ और भी। साथ ही मोहनजीत की ओर से लिखित इमरोज़ उर्फ जैक लन्दन के बारे में एक काव्य चित्र जो की एक कमाल की रचना है। न जाने कितने सागरों की गहरायीओं और कितने ही आसमानों की उडानों को पकड़ा है, उन्हें महसूस किया और उनका एहसास पाठकों को भी कराया....कुल मिलकर यह सब कुछ पढ़ कर ही महसूस किया जा सकता है। यह पत्रिका नागमणि की याद दिलाने के साथ साथ हेम ज्योति, रोहले बाण, किन्तु, प्रेरणा और नागमणि की याद दिलाने और उन सब की कमी को पूरा करने की ज़िम्मेदारी निभाने का पर्यास करती हुयी भी लगती है. हाँ एक बात और.........इस में विनय दुब्बे की एक नज़म भी है जो सिरजन के साभार पर्काशित की गयी है. आओ देखें इस नज़म के दो अंश: मैं जब भी कविता लिखता हूँ तो भूख को भूख लिखता हूँ विचार या विचारधारा नहीं लिखता.............. -------- विचार या विचारधारा के सम्बन्ध मुख्य सचिव प्रगतिशील लेखक संघ मुख्य सचिव जनवादी लेखक संघ से बात करो मैं तो कविता लिखता हूँ........... ------------------चलते चलते विचारों से सव्तंत्र रहने का विचार भी अपने आप में बुरा नहीं पर शोषितों और शोषकों का अंतर अब किस विचार की ऐनक से देखा जाये यह भी विनय दुब्बे ही बता सकते हैं.............. बार बार पढ़ने लायक इस पंजाबी पत्रिका के संपादक हैं परमिंदर जीत और उनका दूरभाष फैक्स नंबर है : ०१८३-२५८६१०७ (अमृतसर)

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