Friday, December 18, 2009

पृथ्वी के वायुमण्डल पर विश्व के प्रत्येक नागरिक का समान अधिकार है--मनमोहन सिंह


प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि पृथ्वी के वायुमण्डल पर विश्व के प्रत्येक नागरिक का समान अधिकार है. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक भारत ने साफ किया है कि वह इस मामले में विश्व समुदाय के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने को तैयार है लेकिन इससे निपटने  का  तरीका ऐसा नहीं होना चाहिये कि गरीब देश गरीब ही बने रहें.
इसी मौके पर 12 दिन लंबी बातचीत के बाद जब विश्व नेताओं की बैठक में कुछ ही घण्टे बचे थे भारत के पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने मेजबान डेनमार्क पर आरोप लगाते हुये कहा, " डेनमार्क के प्रतिनिधियों द्वारा राजनीतिक बातचीत के परिणामों को सार्वजनिक नहीं करना सबसे ज्यादा परेशान करने वाला है.
इसी  दौरान   विदेश सचिव निरुपमा राव की ओर से जारी इस बयान में कहा गया है, "हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि नई राजनीतिक प्रतिबद्धता वाले समझौते से कहीं ऐसा न हो जाए कि बाली एक्शन प्लान से ही ध्यान भटक जाए और ऐसा न हो कि विकसित और विकासशील देशों के बीच ज़िम्मेदारियों के बँटवारे की जो सहमति बनी थी वह ख़त्म हो जाए.
उल्लेखनीय है कि 192 देशों का यह दो सप्ताहों का ऐतिहासिक सम्मेलन,सोमवार ७ दिसम्बर को शुरू हुआ था. उसमें भाग ले रहे कई देश कार्बन उत्सर्जन पर नियंत्रण के तरीक़े खोजने के प्रयास में हैं जिसका संबंध जलवायु परिवर्तन से बताया जाता है. कोपेनहेगन में सम्मेलन के मेज़बान और डेनिश प्रधान मंत्री लार्स लोक्के रासमुसेन ने प्रतिनिधियों से कहा क्योटो संधि को बदल कर एक विश्व व्यापी संधि स्थापित करने का समय आ गया है जो सन 2012 मे समाप्त हो रही है.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि भारत का ये विचार है कि पृथ्वी के तापमान में देखी जा रही वृद्धि वास्तविक है और इसका सबसे ज्यादा खराब असर उस जैसे विकासशील देशों पर ही दिखाई पड़ रहा है. मनमोहन सिंह ने कहा कि यही वजह है कि इस मामले में पहल करते हुये भारत ने स्वेच्छा से 2020 तक अपने कॉर्बन उत्सर्जन में 20-25 प्रतिशत की कटौती का प्रस्ताव रखा है. उन्होंने कहा कि इस समस्या से निपटने के उपाय के तौर पर राष्ट्रीय जलवायु कार्ययोजना को लागू किया जा चुका है और इसके अलावा आठ राष्ट्रीय योजनाओं की घोषणा भी की जा चुकी है. प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत इससे भी आगे बढ़ने को तैयार है बशर्ते विकसित देश भारत को अतिरिक्त आर्थिक सहायता के साथ-साथ जरूरी तकनीक भी मुहैया करायें. मनमोहन सिंह ने याद दिलाया कि यूएनएफसीसी का गठन ही 'जिस राष्ट्र की जैसी क्षमता उसकी वैसी जिम्मेदारी' के सिद्धान्त पर किया गया था. उन्होंने कहा कि कोपेनहेगन बैठक में भारत रचनात्मक भूमिका निभाने को तैयार है क्योंकि ये बैठक सभी के भविष्य के लिये बेहद जलवायु वैज्ञानिकों के राष्ट्रसंघ पैनल के प्रमुख राजेन्द्र पचौरी ने कहा कि समुद्री तूफ़ानों, ग्रीष्म लहरों, तटीय बाढ़ों और सूखे को रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों कि आवश्यकता है.सम्मेलन के पहले की गई वार्ताओं में यह नहीं तय हो पाया कि स्वच्छ उद्योगों के विकास में निर्धन देशों की सहायता के लिए धनाड्य देशों को कितनी सहायता देनी चाहिए. विकासशील देशों की यह मांग भी है कि धनाड्य देश कार्बन उत्सर्जन में जितनी कटौती का वचन दे चुके हैं, उससे कहीं अधिक कटौती का वचन दें.रविवार को दक्षिण कोरिया ने सन् 2020 तक अपनी ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में 34 प्रतिशत और 2025 तक 42 प्रतिशत की कटौती की पेशकश की थी.  यहाँ यह स्पष्ट करना भी आवश्यक लगता है कि विशेषज्ञों के मुताबिक मौसम में बदलाव काफी जल्दी होता है लेकिन जलवायु में बदलाव आने में काफी समय लगता है और इसीलिये ये कम दिखाई देते हैं। इस समय पृथ्वी के जलवायु में परिवर्तन हो रहा है और सभी जीवित प्राणियों ने इस बदलाव के साथ सामंजस्य भी बैठा लिया है। परंतु, पिछले 150-200 वर्षों में ये जलवायु परिवर्तन इतनी तेजी से हुआ है कि प्राणी व वनस्पति जगत को इस बदलाव के साथ सामंजस्य बैठा पाने में मुश्किल हो रहा है। इस परिवर्तन के लिये एक प्रकार से मानवीय क्रिया-कलाप ही जिम्मेदार है.
अफ्रीकी देशों के प्रतिनिधियों ने अपने अपने देशों में हो रहे जलवायु परिवर्तनों के प्रभावों के उदाहरण दिए. घाना के राष्ट्रपति द्वारा दिया गया निम्न वक्तव्य अन्य अफ़्रीकी देशों के नेताओं द्वारा बताए गए विवरणों के प्रतिबिम्ब स्वरूप रहा कि मौजूदा परिस्थिति कैसी है. उन्होंने कहा कि अफ़्रीका तथा अन्य विकासशील देशों में जलवायु परिवर्तन की वजह से जीवन की आवश्यकताओं की गारंटी के लिए पहले से ही मुश्किलें पैदा होने लगी हैं. ये देश जिनमें मेरा देश घाना भी शामिल है, पहले से ही पर्यावरण के बारे में ग़लत जानकारियों की वजह से तथा औद्योगिक देशों के उत्सर्जनों की वजह से परिवर्तनों के प्रभावों को महसूस कर रहे हैं. बारिश की ऊंच-नीच, सूखा, मरूस्थलीकरण, बाढ़ तथा अन्य मौसम आधारित विपदाएँ सीधे सीधे मनुष्य के जीवन पर खतरा पैदा कर रहे हैं और कृषि उत्पादन, भोजन और पानी की सुलभता को भी कम कर रहे हैं
बैठक में हिलैरी क्लिंटन के अलावा ब्रिटिश प्रधान मंत्री गार्डन ब्राउन, फ़्रांसीसी राष्ट्रपति निकोला सारकोज़ी, रूस के राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव, ब्राज़ील के राष्ट्रपति लूला दा सिलवा और जर्मन चांसलर आंगेला मैर्केल भी देखे गए. इससे पहले सम्मेलन से अपनी अपेक्षा को रेखांकित करते हुए जर्मन चांसलर मैर्केल ने कहा कि तापमान में वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए सभी देशों के लिए बाध्यकारी फ़ैसला चाहिए. अगर सभी देशों के लिए बाध्यकारी ऐसा समझौता नहीं होता है, फिर उनकी राय में कोपेनहेगेन का जलवायु सम्मेलन विफल रहा. लेकिन थोड़ी ही देर बाद डेनमार्क के कूटनीतिक अधिकारियों ने ख़बर दी कि एक मसौदा तैयार है और.... 










Thursday, December 17, 2009

जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में प्रदर्शनकारियों और पुलिस की मुठभेड़



अधिकारियों ने बताया कि बेला केन्द्र के बाहर 200 से अधिक प्रदर्शनकारियों को गिरफ़्तार किया गया है. केन्द्र के अन्दर प्रदर्शनकारियों ने धरना दिया. वह एक पर्यावरण दल के सदस्यों के सम्मेलन में प्रवेश का विरोध कर रहे थे, जिसके बारे में उनका कहना है कि उसे मान्यता तो दी गई थी लेकिन सम्मेलन में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई थी. कुल मिलकर माहौल काफी हंगामापूर्ण रहा. 
वोइस आफ अमेरिका के मुताबिक  सम्मेलन  शुक्रवार को समाप्त होना है, लेकिन समझौता वार्ताकार अभी तक कार्बन गैस के उत्सर्जन के नए लक्ष्यों या जलवायु परिवर्तन से निपटने के निर्धनतर देशों के प्रयासों को दी जाने वाली वित्तीय सहायता के बारे में किसी सहमति पर नहीं पहुंच सके हैं.  लेकिन आज प्रतिनिधि, ईथियोपिया द्वारा रखे गए एक प्रस्ताव पर विचार कर रहे हैं जिसमें वैश्विक ताप से ग़ैर औद्योगीकृत देशों पर पड़ने वाले प्रभावों से निपटने के उनके प्रयासों के लिए धनाड्य देशों द्वारा सन् 2020 तक 100 अरब डौलर दिए जाने का प्रावधान है. इस बीच भूतपूर्व डेनिश जलवायु मंत्री कौनी हेडेगार्ड ने बुधवार को सम्मेलन की अध्यक्षता से त्यागपत्र दे दिया. इसी बीच  फ्रेंड्स आफ अर्थ  के कार्यकर्ताओं ने भी अपनी मांगों को लेकर काफी हंगामा किया.



Wednesday, December 16, 2009

दुनिया में अप्रत्यक्ष धूम्रपान के कारण भी होती है सालाना 6 लाख लोगों की मृत्यु

वॉयस ऑफ़ अमेरिका से एक अच्छी और महत्वपूर्ण खबर आई है . यह खबर है उन लोगों के लिए जो स्मोकिंग को बुरा समझते हैं लेकिन उन की बात और आक्रोश को   नज़रंदाज़ कर दिया जाता है. इस खबर में एक बार फिर इस बात की पुष्टि की गयी है कि दुनिया में अप्रत्यक्ष धूम्रपान के कारण सालाना 6 लाख लोगों की मृत्यु होती है. विश्व स्वास्थ संगठन ने कहा है कि सिगरेट न पीने वाले लोगों के लिए और संरक्षण जरूरी है. संयुक्त राष्ट्र के इस संगठन के अनुसार अप्रत्यक्ष धूम्रपान से कई जानलेवा बीमारियां होती हैं और सालाना 10 अरब डॉलर का नुकसान भी होता है. दुनिया के 17 देशों में सार्वजनिक जगहों पर धूम्रपान करने की मनाही है, 2008 में कोलंबिया, जिबुटी, ग्वाटेमाला, पनामा, तुर्की, और ज़ाम्बिया ने भी इस कानून को लागू किया था. लेकिन संगठन के अनुसार और देशों को इस कानून को अपनाना होगा. फिलहाल सबसे ज्यादा आबादी वाले सिर्फ 22 शहरों में सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान की मनाही है. दुनिया में ज्यादा आबादी वाले 100 शहर है जिनमें कई भारतीय शहर भी शामिल है. गौरतलब  है कि सिख धर्म में सदिओं पूर्व ही इस के खिलाफ सख्त रुख अपना लिया गया था. अब पूरी दुनिया भी इस बुरी लत  की  बुरायिओं को जान  चुकी है. क्यूं है न एक अच्छी खबर...! 

Saturday, December 12, 2009

नए साल के साथ ही हो जाएगी कयामत की शुरुआत

           चक्रधर ने शोषण करने वाले धर्मगुरुओं को भी रखा निशाने पर
 महासम्भूती के अवतरण  का  दावा  करने   वाले चक्रधर ने फिर स्पष्ट किया है की 31 दिसम्बर की आधी रात को नया साल शुरू होते ही कयामत की भी शुरुआत हो जाएगी. इस चेतावनी में कहा गया है कि यह अवतरण असत्य और अधर्म का विनाश करके सत्य और धर्म की स्थापना करने के लिए ही हुआ है. साथ ही यह भी कहा गया है श्री श्री आनंदमूर्ति का जन्म वास्तव में उसका ही निराकार रूप था.
        दूसरी तरफ श्री श्री आनंदमूर्ती में अपनी अटूट  आस्था रखने वाले कुछ आनंदमार्गिओं ने अनौपचारिक बातचीत में कहा कि होगा तो वही जो बाबा चाहेंगे ..बाकी सब जो हो रहा है वह भी बाबा की ही लीला है. इस सारे मामले पर औपचारिक  तौर पर कुछ भी देखने में नहीं आया. गौरतलब है कि चक्रधर ने अपने दावों की शुरुआत करते ही कह दिया था कि उसने सभी को दो महीने का समय दे दिया है कि अगर वे बचना कहते हैं तो असत्य को छोड़ कर उसका  ही  ध्यान करें क्योंकि वही सत्य है.

          अब उस रूप और जन्म  का काम समाप्त हो गया है. इस चेतावनी में समाज का शोषण करने वाले धर्मगुरुओं को भी निशाने पर रखा गया है और कहा गया है कि वे विनाश से बचना चाहते हैं तो तुरंत सत्य के साथ आ जायें.

              अपनी बात को स्पष्ट करते हुए चक्रधर ने कहा है कि बहुत ही कम धर्मगुरु ऐसे हैं जो भगवान् और अध्यात्म के ज्ञान कि प्यास लेकर आये आम लोगों को यह ज्ञान देकर अपना कर्म कर रहे हैं, अन्यथा अधिकतर लोग तो अपनी जेबें भरने में ही लगे हैं. इस तरह के सभी लोगों से कहा गया है कि वे तो गुरु कहलाने के भी काबिल नहीं हैं.

                 इसके साथ ही यह भी स्पष्ट किया गया है जगतगुरु का स्थान ही सबसे ऊँचा होता है और वास्तव में आनंदमूर्ति ही एक ऐसे जगतगुरु थे जिनकी किसी भी बात को अभी तक कोई भी चुनौती नहीं दे सका. परन्तु मेरा अर्थात चक्रधर का जन्म होते ही जगतगुरु का काम खत्म हो गया. चेतावनी में कहा गया है कि अब मैं चक्रधर ऐसे सभी धर्मगुरुओं और उनके संगठनों को समाप्त कर दूंगा जो कि असत्य कि राह पर हैं.

             चक्रधर ने यह भी कहा है कि मैं ही शिव था, मैं ही कृष्ण था और मैं ही अब चक्रधर हूँ  जिसने समाज के सभी चक्रों को पूरा करने के बाद अब सत्ययुग की स्थापना करनी है. चक्रधर ने कहा है वही परमात्मा है, वही महाकाल है और अब वही कल्की अवतार है. इस विस्तृत  पत्र में किये गए कई दावों के अंत में कहा गया है कि  मैं ही तुम्हारा ज्ञान हूँ,  मैं ही तुम्हारा ध्यान हूँ,  मैं ही तुम्हारा कर्म हूँ,  मैं ही तुम्हारा धर्म हूँ. मैं ही शिव हूँ,  मैं ही कृष्ण हूँ और मैं ही चक्रधर हूँ.

            इस तरह की बहुत सी बातें और भी हैं जो कही गयीं हैं. अब देखना यह है धर्मगुरु और समाज इस पर अपनी क्या प्रतिक्रिया  देते  हैं  वो भी उस हालत में जब कहा  यह  भी गया है की इस सब का मकसद केवल एक मानव धर्म की स्थापना करना है तांकि हिन्दू, मुस्लिम और क्रिस्चिअनो में खंडित समाज को केवल एक मानव संगठन में स्थापित किया जा सके. यह  दावा  सचमुच ही नए साल के मौके पर कोई  प्रलय लेकर आता है या फिर यह भी समाज को विघटित करने कि कोई चाल है इसका पता तो वक़त आने पर ही चलेगा पर एक बात साफ़ है रोज़ी-रोटी  के लिए और शोषण के खिलाफ हर लडाई इस तरह के एलानों और बयानों से अगर समाप्त नहीं भी होती तो कमज़ोर ज़रूर हो जाती है.

आप सभी इस मुद्दे पर क्या सोचते हैं इस का इंतज़ार तो  मुझे रहेगा ही पर यहाँ याद आ रहा है जनाब साहिर लुधियानवी साहब का लिखा हुआ एक गीत...वोह सुबह कभी तो आएगी......लीजिये आप भी सुनिये......वही गीत, कुछ सोचने के लिए मजबूर करते वही बोल और अंतरात्मा तक उतर  जाने वाला संगीत..पर अंदाज़ फिर भी कुछ अलग सा... जिसने इस गीत के बोलों के तेवर कुछ और तेज़ कर दिए  हैं......तो बस कीजिये क्लिक...और सोचिए कि आज हमारी लडाई किस मुद्दे पर होनी चाहिए और किस के खिलाफ...?????

....वोह सुबह कभी तो आएगी....... .

इस सब के साथ ही;
आपका अपना ही,
--रैक्टर कथूरिया 

आनन्दमार्ग जागृति में हुई तन-मन के गहरे रहस्यों की चर्चा 

आनंदमार्गिओं ने नकारा महासम्भूति  के अवतरण का दावा

नए साल के साथ ही हो जाएगी कयामत की शुरुआत


Monday, November 30, 2009

कहानी बेस्ट सेलर डाक्टर रवि बत्रा के संघर्ष और सफलता की

                    जिंदगी में मुश्किलें भी आती हैं और करिश्में भी होते हैं.... कैसे हमारे बने बनाये काम उस वक्त बिगड़ जाते हैं जब हम  तो दूर हमारे दुश्मन भी उनके  बिगड़ने की बात नहीं सोच सकते और कभी कभी बिगड़े हुए काम  कैसे उस हालत में भी संवर  जाते हैं जब हमें किसी करिश्में की भी कोई उम्मीद बाकी नहीं बचती. यह एक सच्ची कहानी है डाक्टर रवि बत्रा नाम के उस जाने माने  विद्वान की जिसने पूरी दुनिया को हिला दिया. उसकी योग्यता का लोहा पूरी दुनिया ने मान लिया. मैंने इस पुस्तक को कई साल पहले पढ़ा था. संकटकाल के कई अवसरों पर  इस पुस्तक ने मुझे शक्ति दी,सांत्वना दी...प्रस्तुत हैं उस पुस्तक का केवल एक अंश जिसे मैंने 09 फरवरी 1998  को अपनी डायरी में नोट किया था.
            
               .... मैंने कुछ ही महीनों में अपनी किताब की आठ हजार प्रतिंयां  बेच डाली थी, फिर भी मुझे कोई  प्रकाशक नहीं मिल रहा था.मैंने फिर उपवास के माध्यम से प्रयास किया. जैसे ही मई-1986  में कक्षाएं समाप्त हुयीं, मैंने एक सप्ताह के उपवास का निश्चय किया. ठीक उसी पुराने ढंग से, पहले तीन दिन बिना कुछ खाए-पिए और अंतिम चार दिन जल के साथ. यह मेरा सातवां लम्बा उपवास था. लेकिन अब मेरा शरीर बहुत दुर्बल हो चूका था. मेरे संघर्षों की कीमत चुक चुकी थी. मैं छठे दिन उपवास नहीं कर सका. मुझे चक्र आने लगे और उल्टियाँ लग गयीं. उपवास तोडना पड़ा.
           
                यह मेरे जीवन का सब से बड़ा संकट काल था. परमपिता के प्रति मेरा विशवास डिगने लगा था.....सारी दुनिया को सुचेत करने के लिए जो भी मेरे लिए सम्भव था, मैं कर चुका था. बहुत हो चुका था. अंतर्मन दुखी होकर चिल्ला रहा था," अब और अधिक कष्ट सहन नहीं करूंगा., स्वयं को और पीड़ा नहीं दूंगा".

                        मैंने किताब सम्बन्धी सारे  काम बंद कर दिए. मुझे तीसरे प्रकाशन के बर्बाद होने की भी चिंता नहीं थी. मैं तो अब घंटों घंटों  ध्यान साधना के आनंद में दुबकी लगाने के लिए बठने लगा.मैं परमपिता को नहीं भूल सकता था.

                कुछ बहुत बड़ी बात जो मेरी जानकारी में नहीं थी, होने जा रही थी. सातवें अधूरे  उपवास ने वास्तव में उन बाधाओं की कमर तोड़ दी थी जो  मेरा पीछा लगातार कर रहीं थीं....
 बस यहाँ से शुरू हो जाती है  डाक्टर रवि बत्रा को सफलता के आसमान पर पहुँचाने वाली कई कहानिओं की शुरुआत...और यह सिलसिला आज भी जारी है. विश्व में अर्थशास्त्र के क्षेत्र में उनका नाम आज भी सम्मान से लिया जाता है. उनकी भविष्यवाणियो को आज  भी लोक दिल थाम कर पढ़ते और सुनते हैं....गौरतलब है कि जब अंतर्राष्ट्रीय स्तर के प्रख्यात आर्थिक जर्नल इकोनोमिकल इन्क्वायरी के अक्टूबर-1990  के अंक में एक विशेष तुलनात्मक अध्यन प्रकाशित किया तो अमेरिका और कनाडा के तमाम विश्वविद्यालिओं  के अर्थशास्त्र विषय के 46 सुपरस्टार अर्थशास्त्रियो  के क्रम में तीसरा स्थान  डाक्टर रवि बत्रा को दिया गया था. 
   
                     और अब आखिरी पंक्तिया: आध्यात्मिकता की जिस मशाल को विवेकानंद ने पहले अपनी अमरीकी यात्रा में जलाया था अब वही मशाल प्रोउत के रूप में पल्लवित और पुषिप्त होकर पूरण ज्योति के साथ प्रजव्लित होगी. उठिए   और मेरे साथ भगवत गीता कि भावना से ओत प्रोत पंक्तिया  दोहराइए.
                                                                   जितनी बड़ी दुनिया, उतनी ही बड़ी बाधा,
                                                                   जितनी बड़ी बाधा, उतनी ही बड़ी उपलब्धि.
 अत: असफलता के लिए बाधाओं को नहीं, बल्कि निरंतर प्रयत्नशीलता   के अभाव को लांछित करना चाहिए.                                                                                                                                               --रैक्टर कथूरिया
          

Friday, November 27, 2009

आनंदमार्गिओं ने नकारा महासम्भूति के अवतरण का दावा

हम केवल और केवल अपने बाबा को ही जानते हैं:आनन्दमार्गी 
आनंदमार्ग के बहुत बड़े हिस्से ने उस दावे को पूरी तरह से ख़ारिज  कर दिया है जिसमें कहा गया है कि आनंदमार्ग के संस्थापक श्री श्री आनंदमूर्ति जी की भविष्यवाणी के मुताबिक अब महासम्भूती का अवतरण हो  चुका है. आनंदमार्ग के इस बड़े हिस्से ने यह बात पूरी तरह से साफ़ कर दी है कि  वे केवल और केवल बाबा को जानते हैं और उन पर ही विशवास करते हैं जो कि इस तरह के दावों से टूटने वाला नहीं. इस बड़े  हिस्से ने यह भी कहा है कि अब बाबा का स्थान  कोई नहीं ले सकता. इस हिस्से ने दावा करने वाली महिला को भी सलाह भी दी है कि वोह गहरायी में जा कर साधना , ध्यान करे और  बाबा के सामने समर्पण करदे.

गौरतलब है बैंगलोर की एक महिला ने चार नवम्बर 2009  की  तारीख वाले एक पत्र में दावा किया था कि श्री श्री आनंदमूर्ति जी की भविष्यवाणी के मुताबिक  महान्सम्भूती का  अवतरण अब हो चूका  है  इस लिए सभी लोग उसकी शरण में आ जायें. उसने महासम्भूती चक्रधर का अंतिम नोटिस भी सभी आनंदमार्गिओं के नाम जारी किया.
 
इस अंतिम नोटिसनुमा पत्र में कहा गया है कि मैं जल्द ही इस धरती पर नकारत्मक शक्तिओं के खिलाफ धर्मयुद्ध छेड़ने जा रहा हूँ; चाहे तुम इस धर्मयुद्ध में शामिल होना चाहो या न, मैं जल्द ही महाविनाश और महाप्रलय  की शुरुआत कर दूँगी. पत्र में कहा गया है कि मैं ही सम्पूर्ण और परिपूर्ण हूँ, मुझे जान लो, मुझे पहचान लो...मैं इस महाविनाश में तुम्हारी रक्षा करना चाहता हूँ. पत्र के आरम्भ में ही यह भी कहा गया है मैंने  ही आनंदमूर्ति बनकर इस धरती पर जनम लिया था और कहा था कि एक दिन महासम्भूती का अवतरण होगा...और अब यह अवतरण हो चूका है....

खुद  को श्री  श्री  आनंदमूर्ति का अवतार बताने वाले  महासम्भूती  चक्रधर ने  अपनी महायुद्ध और महाविनाश की  चेतावनी में कहा है इसकी शुरुआत 31  दिस्मबर 2009  और प्रथम जनवरी 2010  की मध्य रात्रि को हो जाएगी. इस चेतावनी में यह भी कहा गया है की उसने अपने भक्तों और सच्चे  लोगों को अपना बचाव करने के लिए नवम्बर  और  दिसम्बर - दो महीनों का वक्त दिया है...इसलिए अब वही  लोग बच पायेंगे जिन्होंने इस कार्यकाल में उसका दिया मन्त्र लगातार जपा होगा. पत्र में यह भी कहा गया है कि उसका नाम ही अपने आप में महामंत्र है..

दूसरी  तरफ  आनंदमार्गिओं ने इस मुद्दे पर सखत रुख अपनाते हुए यहाँ तक कहा है की इस  तरह की बकवास कोई दिमागी मरीज़ ही कर सकता है. मार्ग से जुड़े लोगों का यह भी कहना है कि वे केवल और केवल अपने बाबा को ही जानते हैं और किसी को नहीं. आनंदमार्गिओं ने इस महासम्भूति उर्फ चक्रधर को साधना और ध्यान करने की सलाह भी दी है तां कि उसे बाबा का ज्ञान प्राप्त हो सके.  फिर भी जो लोग देखना ही चाहते हैं कि आखिर क्या है इस चेतावनी में और क्या है अवतरण का दावा,  वे नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर सकते है और देख सकते हैं महाविनाश के शरू होने का वह वक्त जो महासम्भूति उर्फ़ चक्रधर ने घोषित किया है. 
http://cakradhara.yolasite.com/shona.php

Ananda Marga Related links: 

आनन्द मार्ग स्कूल में भी मनाया गया स्वतन्त्रता दिवस 

आनंदमार्गिओं ने नकारा महासम्भूति  के अवतरण का दावा

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Wednesday, November 25, 2009

दरअसल यह किताब अन्याय पर मेरा दूसरा जूता है-जरनैल सिंह


अपनी  नयी  किताब पर जरनैल सिंह का कहना है कि दरअसल अन्याय पर ये उसका दूसरा जूता है. यह बात उसने एक मीडिया इंटरवीयू में कही है. उसने यह भी बताया  कि कैसे इस किताब को लिखने  के लिए उसे सखत मेहनत और खोज करनी पड़ी. हालांकि उसने माना कि इसमें उसका अपना 11 बरसों का कटु अनुभव भी शामिल है पर फिर भी यह एक हकीक़त है इतने बरसों के बाद घटनायों के पीड़ितों को खोज निकालना  कोई आसान नहीं था. वो भी वहां जहाँ घटना के वक्त ही इतने  बड़े सामूहिक  हत्याकांड  को सरकारी मीडिया ने पूरी तरह से नज़र अंदाज़ कर दिया था. इस किताब को लिखने की पूरी कहानी आप अंग्रेजी में भी पढ़ सकते हैं बस नीचे दिए गए लिंक को दबा कर जहाँ आपको जरनैल सिंह की किताब और उसके बारे में कई और लोगों के विचार भी मिलेंगे.  इसके  साथ ही और भी बहुत कुछ.देख और सुन सकते हैं आप दूसरे लिंक पर क्लिक कर के यह कहानी है कुछ उन लोगों की जिन्हों ने इस देश का इतिहास भी कलंकित कर  दिया. पर कमज़ोर दिल के लोग इसे न देखें तो अच्छा होगा.

यह अन्याय पर मेरा दूसरा जूता है-जरनैल सिंह 

http://www.1984vigil.com/

और अब 1984 पर जरनैल सिंह की नयी किताब : I Accuse ...



25 बरसों से लगातार न्याय  की इंतज़ार कर रही सिख कौम के युवा पत्रकार जरनैल सिंह ने जूता उछाला तो बात दूर दूर तक पहुच गयी. दरअसल वह जूता किसी व्यक्ति पर न तो था न ही हो सकता था क्योंकि सिख कौम तो दोनों वक्त सर्बत्त का भला मांगती है. सिख आक्रोश का वह जूता उछला था उस सिस्टम पर जिस पर सभी को शर्म आनी चाहिए पर कभी आती नहीं. बात आई गयी हो गयी. इसकी याद ताज़ा हुयी आज उस वक्त जब मैं अपनी मेल देख रहा था. उसमे  एक ऐसा पत्र भी था जिसमें एक बार फिर नवम्बर-1984 की चर्चा की गयी थी. उसे खंगालता खंगालता मैं पहुँच  गया एक ऐसी साईट पर जिसमे एक बार फिर नज़र आया जरनैल सिंह का चेहरा. चर्चा उसकी किताब की थी. इस किताब को अपने गरिमामय अंदाज़ में प्रकाशित किया है पेंगुइन ने और इसकी भूमिका लिखी है खुशवंत सिंह ने.  तथ्यों और आंकड़ों का ज़िक्र जहाँ जरनैल सिंह की पत्रकारिता और तर्क को दिखाता है वहीँ पर घटनायों का मार्मिक प्रस्तुतिकरण उसके कवी ह्रदय से भी रूबरू करवाता है. 

http://www.carnage84.com


Saturday, November 21, 2009

हजारों कुर्सियां ऐसी कि हर कुर्सी पे दम निकले,

 जो इस पे बैठ कर खुद से उठे हों ऐसे कम निकले
चलते चलते  याद आ गयी तो उठ कर डायरी  के पन्ने उलटे. एक पन्ने पर नज़र अटकी तो देखा  तारीख थी 16 मार्च और साल था 1996. दिल्ली  में  42 वां शंकर  शाद  मुशायरा था जिसमें पाकिस्तान से डाक्टर अहमद फ़राज़ भी आये हुए थे. जनाब कैफ़ी आज़मी, निदा  फाजली  और  कृशन बिहारी नूर जैसे कई और शायर भी इस रात को बहुत रंगीन बनाने वाले थे.  उस मुशायरे में बहुत कुछ यादगारी पढ़ा भी गया और सुना भी गया. पर जिस जिस जिस की चर्चा हुयी उसका ज़िक्र करने से पहले ग़ालिब साहिब का ज़िक्र बहुत ज़रूरी है. जनाब मिर्ज़ा ग़ालिब का एक अश्यार है:

हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले, 
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले.

इस की पैरोडी पेश करते हुए जनाब कैफ़ी आज़मी ने इस मुशायरे में अपना कलाम पढ़ा :

हजारों  कुर्सियां  ऐसी  कि हर कुर्सी पे दम निकले, 
जो इस पे बैठ कर खुद से उठे हों ऐसे कम निकले.

इस मौके पर निदा फाजली भी मौजूद थे. जब आधी रात के बाद उनकी बारी आई तो उन्होंने अपना निशाना साधा  लाल कृष्ण  अडवानी की दूसरी रथ यात्रा पर और कहा :

तुम्हे हिन्दू की चाहत है न मुस्लिम से अदावत है ;
तुम्हारा धर्म सदिओं से तिजारत था तिजारत है.

मुझे इस की याद आई कल रात उस वक्त आई जब टीवी पर चल रही लोकमत और आईबीएन-7 पर हुए  हमले  की खबर पुराना होने का नाम ही नहीं ले रही थी. इस खबर के मुद्दे में मओवादिओं की और से ब्लास्ट करके उड़ाई गयी रेल की खबर भी कहीं गुम हो गयी थी और दिल्ली  में किसानों  की महारैली  के कारन हुए हंगामों  और जाम की खबरें भी गायब थीं. सुबह होने पर यह भी पता चला कि शिव सेना ने बाकायदा इस हमले की ज़िम्मेदारी ले ली है और शिव सेना के सुप्रीमो बाल ठाकरे ने इसे सामना में जायज़ ठहराते हुए लिखा है  कि मीडिया कोई भगवान् तो नहीं है....

इस टिप्पणी को पढ़ कर लगा कि सचमुच भगवान  तो अपने आप को वही लोग समझते हैं जिन्हें कुर्सी मिल जाती है और ठाकरे साहब तो किंग मेकर  रहे हैं ... वे मीडिया तो दूर भगवान् को भी पूछ सकते हैं हां भाई कौन हो...? कहाँ से आये हो...? क्या करने आये हो...?  अगर उत्तर  भारत के देवता हो तो फिर यहाँ महाराष्ट्र में क्या करने आये हो....चलो अगर अब आ ही गए हो तो सिर्फ मराठा लोगों को ही अपना भक्त बनाना...समझे या फिर हम समझाएं....!!!!  अगर भगवान् मान गए तो ठीक नहीं तो फिर उन पर भी हो सकता है  शिव सेना या फिर मनसे का  एक हमला.

बहुत कुछ है कहने को...कई और यादें भी ताज़ा हो गयी हैं पर उनकी चर्चा फिर कभी सही.... फिलहाल इसी मुशायरे में से कैफ़ी आज़मी साहब की ही एक और ग़ज़ल की चर्चा:

बस्ती में अपनी हिन्दू मुसलमां जो बस गए,
इन्सां की शक्ल देखने को हम तरस गए .
बस अब गरीबी जाने ही वाली है मुल्क से,
ये सुनते सुनते ऊम्र से 70 बरस गए..!

देश की जनता इस मूल मुद्दे को कब समझेगी और उन लीडरों को कब अलविदा कहेगी जो जनता को लड़ाने के चक्र में ही रहते है...
आजमगढ़ से आये सागर आज़मी ने एक बात इसी मुशायरे में कही थी...वो आपकी नज़र कर रहा हूँ इस उम्मीद के साथ कि शायद देश कि जनता अपने दोस्तों और दुश्मनों  को अब भी जल्द से जल्द पहचान ले.....सागर साहब ने अपना तजुर्बा भी कहा और सलाह भी दी.....:

जब उसने कोई ज़ख़्म हमारा नहीं देखा, 
हमने भी उसे मुड़के दोबारा नहीं देखा.

Tuesday, November 17, 2009

ग़ज़ल


दुनिया  को  असल बात बता क्यूं नहीं देते !
लफ़्ज़ों की करामात दिखा क्यूं नहीं देते ?

ज़ालिम का हर नकाब उठा क्यूं नहीं देते!
लोगों को उसकी शक्ल दिखा क्यूं नहीं देते ?

ज़ुल्मों की दास्तान सुना क्यूं नहीं देते !
कलमों से इक तूफ़ान उठा क्यूं नहीं देते ?

लोगों को उनके ज़ख़्म दिखा क्यूं नहीं देते !
सोयी हुयी ताक़त को जगा क्यूं नहीं देते ?

महलों की नींव आज हिला क्यूं नहीं देते !
तुम जालिमों की नींद उड़ा क्यूं नहीं देते ?

ज़ालिम का पता सब को बता क्यूं नहीं देते !
इक आग बगावत की लगा क्यूं नहीं देते ?

(12-4-1991 को)

ग़ज़ल


दुनिया को मेरा जुर्म बता क्यूँ नहीं देते ?
मुजरिम हूँ तो फिर मुझको सजा क्यूं नहीं देते ? 

बतला नहीं सकते अगर दुनिया को मेरा जुर्म !
इल्जाम नया मुझ पे लगा क्यूं नहीं देते ?

मुश्किल मेरी आसान क्यूं बना क्यूं नहीं देते !
थोड़ी सी ज़हर मुझको पिला क्यूं नहीं देते ?

यूं तो बहुत कुछ आप ने इजाद किया है !
इन्सान को इन्सान बना क्यूं नहीं देते..?

दिल में जनूं की आग जला क्यूं नहीं लेते !
इन शोअलों को कुछ और हवा क्यूं नहीं देते ?

(10, 11 और 12 अप्रैल 1991 को)

ग़ज़ल


सब से पत्थर खाता है वो दीवाना!
फिर भी सच सुनाता है वो दीवाना!

यादों की खुद आग लगाता है हर रोज़;
फिर उसमें जल जाता है वो दीवाना!

तूफां  में चिराग जलाता हो जैसे; 
प्यार के गीत सुनाता है वो दीवाना!

बार बार करता है बात मोहब्बत की,
खुद ही दर्द जगाता है वो दीवाना!

ये दीवानापन तो अच्छी बात नहीं;
मुझको यह समझाता हिया वो दीवाना!

(13-4-1991 की रात को)

Saturday, July 04, 2009

एक मिसाल और

इस में कोई संदेह नहीं कि आजकल बहुत से अन्य क्षेत्रों की तरह मीडिया में भी लड़किओं का वर्चस्व बढ रहा है पर इसके बावजूद अभी भी उन लड़किओं की संख्या कम नही हो पाई जो हालात की आंधी में बह कर मजबूरिओं के सामने घुटने टेक कर गुमनामी की जिंदगी में खो जाती हैं। मुझे अभी भी बहुत से नाम याद हैं । बहुत सी लड़किओं पर मेहनत की गई, उन्हें बहुत कुछ सिखाया गया, कई तरह के प्रैक्टिकल अनुभव कराए गए और जब वे स्वतंत्र तौर पर काम सँभालने की स्थिति में आयीं तो उन्हों ने शादी के बंधन में बंधने और पत्रकारिता को अलविदा कहने की घोषणा कर दी। इस सारी स्थिति से मुझे भी कई बार निराशा हुयी पर कहते हैं कि अमावस कि रात ही नए चाँद को जनम देती है। मुझे कुछ ऐसा ही महसूस हुआ मीनू को देख कर। मीनू गिल्होत्रा शुक्रवार कि सुबह को दूरदर्शन पर एक इंटरव्यू ले रही थी। पंजाब के जाने माने पत्रकार जतिंदर पन्नू से उसकी बात-चीत काफी अच्छी थी। मीनू को देख कर मुझे हैरानी भी हुयी और खुशी भी। हैरानी इस लिए कि जतिंदर पन्नू जैसे विद्वान और तेज़ तरार पत्रकार से सवाल पूछ पाना आम तौर पर आसान नहीं होता और खुशी इस लिए मीनू यह सब काम बहुत ही सहजता से कर रही थी। माँ बन कर भी उसने पत्रकारिता से अपना इश्क कभी कम नहीं होने दिया। मैंने उसे विपरीत हालतों में भी मुस्कराते हुए काम करते पहले भी कई बार नज़दीक से देखा था पर यह मेरी हैरानी कि हद थी। सारे घर के नाश्ते का इंतजाम कर के सुबह सवेरे घर से निकलना और फ़िर ख़ुद ही गाड़ी ड्राईव करके वापिस लुधियाना पहुँचाना आसान नहीं होता। वापिसी के बाद भी वोह आराम नहीं करती बल्कि एक निजी चैनल के लिए रिपोर्टिंग करती है। काफी कुछ उसकी खूबिओं पर लिखा जा सकता है पर फिलहाल इतना ही कहता हूँ कि वोह उन सभी लड़किओं के लिए एक मिसाल जो हालात के सामने घुटने टेक कर करियर और समाज के प्रति अपने बनते कर्तव्य से मुँह मोड़ लेती हैं।

Friday, April 24, 2009

गीता से गीतांजलि तक मार्क्सवाद के साथ साथ




साहित्य एक कला भी है और हथियार भी - इस विचार को ले कर अपनी प्रथम पुस्तक के साथ किताबों की दुनिया में अपनी मौजूदगी दर्ज करवाने वाले ग्लेक्सी के तीखे तेवर अपने पुरे तर्क के साथ इस रचना में भी नज़र आते हैं. दुनिया भर के कुछ सत्यों का ज़िक्र करते हुए ग्लेक्सी ने याद दिलाई है - "कर्मयोग से पलायन तो गीता में भी सहन नहीं किया गया था.....!" साथ ही तीखा व्यंग्य भी है... किसी को इस बात का सहम है कि अगर कुछ कहा तो अँधेरा उसे सहन कैसे करेगा ?

गौरतलब है कि दशकों पूर्व किसी ज़माने में जाने माने पंजाबी शायर सुरजीत पात्र की ओर से उठाये गए इस सवाल का जवाब देते हुए डॉक्टर औलख कहते हैं - अँधेरे ने तो कभी भी सहन नहीं किया वह तो हिटलर के गैस चेम्बरों तक भी पहुंचा देता है, फांसी के फंदे पर भी लटका देता है और बंद बंद भी कटवा देता है. यह अँधेरे की फितरत है जो हमेशां रहेगी.........! अगर जिसम में जान और आत्मा में ज़मीर ही नहीं तो कलम उठाई ही क्यूँ थी ? पांच रुपयों की चूहे मारने वाली दावा हर गली के मोड़ पर मिल जाती है वही खा ली होती...! कम से कम कलम उठा कर पूरी मानवता को शर्मसार, कलंकित और लहूलुहान तो न किया होता...! दस्तावेजी और गल्प शैली के खूबसूरत आवरण में रची गयी कुल ११ कहानीयां इस पुस्तक में दर्ज हैं...

कवर पर लेखक का छदम नाम ही नज़र आता है लेकिन बैक कवर पर अपनी असली तस्वीर के साथ लेखक ने यह सवाल भी उठाया है-- फाशीवाद क्या है? नाजीवाद से इसका क्या रिश्ता है ? तालीबान, खालिस्तानी, तामिल-टाईगर्स, बाल ठाकरे और आर.एस.एस. इतियादी किस विचारधारा की प्रतिनिधिता करते हैं.लेखक का एक सुझाव भी है के कार्लमार्क्स अच्छा है या बूरा, गांधी सही है या गलत, हिटलर खराब है या बढ़िया...यह फैसला पाठकों को करने दो. हकीकत की सभी परतों को पाठकों के सामने पूरी तरह से नगन कर दो एक इमानदार पत्रकार की तरह....पर अपना निर्णय मत थोपो.

आओ देखें किताब का एक अंश :

मैं शैतानों के मुल्कों में घूमा. वे इसे लोकतंत्र कहते हैं.......पर उफ़ वहां बहुत गन्दगी थी.चारो तरफ गंदगी ही गंदगी. भर्ष्टाचार, बेईमानी, छल,वहां की जीवन जाच हैं... लोगों को बुद्धू बनाना सरकारों का हुनर है. घोटालों से देश के विकास को मापा जाता है. बैंक घोटाला, शेयर घोटाला, हवाला और गावाला घोटाला. सैनिकों के कफ़न तक खरीदने में घोटाले
.

किताब में किडनी कांड वाले डॉ. अमित का भी जिक्र है सत्यम के राजू का भी और बहुत से कई ऐसे मामलों का जिन्हें देख-सुन कर दिन का चैन उड़ जाता था और रातों की नींद भी...या फिर रोंगटे खड़े हो जाते थे. इस पुस्तक में और भी बहुत कुछ है जिसे पढ़ खोखले साहित्य का मज़ा शायद न मिले पर अंतर आत्मा में कुछ झंकुरत होता हुआ ज़रूर महसूस होगा. जो आप को रुला भी सकता है और आंदोलित भी कर सकता है इस लिए अगर आप इसे पढ़ना ही चाहते हैं तो दिल और दिमाग दोनों को सावधान ज़रूर कर लें...बा मुलाहजा होशिआर... आ गयी है या फिर ( जा रही है ) "रब दी हकूमत"

Wednesday, April 15, 2009

अक्षरों के ज़रिये चेतना की रौशनी बाँट रहा "अक्खर"

घर में जितनी भी किताबें थी वे मैं सब पढ़ चुका था। न ही समीक्षा के लिए कोई नयी किताब मेरे पास आई थी और न ही भेंट में. चैनल की नौकरी छोड़ने के बाद वितीय संकट भी एक बार फिर गहरा गया था। किसी बुक स्टाल पर भी अब पहले की तरह एक दम सीधे सीधे जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। एक दिन लुधियाना के पंजाबी भवन में एक मीटिंग का बुलावा था सो वहां चला गया। मीटिंग शुरू होने में अभी आधा घंटा लगता नज़र आ रहा था. वक़्त का फायदा उठाने के लिए वहीँ पर स्थित लोक गीत प्रकाशन के कार्यालय में जाना कुछ ज्यादा ठीक लगा। मन में आया के चलो नयी किताबों का भी पता चल जायेगा और कीमत का भी कुछ अंदाजा हो जायेगा. वहां विनय कुमार जी थे शायद वहां के इंचार्ज। बहुत ही सनेह से मिले और सूचि मांगने पर उन्होंने मुझे अमृतसर से निकलती एक पंजाबी पत्रिका "अक्खर" का अप्रैल अंक पकड़ा दिया जिसमें पुस्तक सूची भी थी और बहुत कुछ और भी था जिसने मुझे काफी सुखद अहसास दिया। इस पत्रिका में काफी कुछ था। गुलज़ार की नज़म, वान गाग का उदासी का पोर्ट्रेट, डॉक्टर रविंदर से मुलाकात, नोबल पुरस्कार को आलुओं की बोरी कह कर ठुकरा देने वाले जान पाल सार्तेर के साथ उसकी महबूबा का संवाद और बहुत कुछ और भी। साथ ही मोहनजीत की ओर से लिखित इमरोज़ उर्फ जैक लन्दन के बारे में एक काव्य चित्र जो की एक कमाल की रचना है। न जाने कितने सागरों की गहरायीओं और कितने ही आसमानों की उडानों को पकड़ा है, उन्हें महसूस किया और उनका एहसास पाठकों को भी कराया....कुल मिलकर यह सब कुछ पढ़ कर ही महसूस किया जा सकता है। यह पत्रिका नागमणि की याद दिलाने के साथ साथ हेम ज्योति, रोहले बाण, किन्तु, प्रेरणा और नागमणि की याद दिलाने और उन सब की कमी को पूरा करने की ज़िम्मेदारी निभाने का पर्यास करती हुयी भी लगती है. हाँ एक बात और.........इस में विनय दुब्बे की एक नज़म भी है जो सिरजन के साभार पर्काशित की गयी है. आओ देखें इस नज़म के दो अंश: मैं जब भी कविता लिखता हूँ तो भूख को भूख लिखता हूँ विचार या विचारधारा नहीं लिखता.............. -------- विचार या विचारधारा के सम्बन्ध मुख्य सचिव प्रगतिशील लेखक संघ मुख्य सचिव जनवादी लेखक संघ से बात करो मैं तो कविता लिखता हूँ........... ------------------चलते चलते विचारों से सव्तंत्र रहने का विचार भी अपने आप में बुरा नहीं पर शोषितों और शोषकों का अंतर अब किस विचार की ऐनक से देखा जाये यह भी विनय दुब्बे ही बता सकते हैं.............. बार बार पढ़ने लायक इस पंजाबी पत्रिका के संपादक हैं परमिंदर जीत और उनका दूरभाष फैक्स नंबर है : ०१८३-२५८६१०७ (अमृतसर)